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अमीर खुसरो का दोहा।

 1. गोरी सोते सेज पर, मुख पर डाले केश 

चल खुसरू घर अपने,रैन भई चहुं देश।

सन्दर्भ ‌‌‌‌:- प्रस्तुत दोहा अमीर खुसरो द्वारा संचालित हैं।

प्रसंग - जब अमीर खुसरो दिल्ली में नहीं थें तब उनके गरू हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने अपना शरीर त्याग दिया। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने अपने चेलों से कहा कि खुसरो से कहें कि वह यहां न आए और उनकी कब्र को छुएं भी नहीं। अगर ऐसा होगा, तो उन्हें अल्लाह के हुक्म की नजरंदाज करना होगा। अल्लाह की कब्र से दूर भी रखी। 

उन्होंने तभी यह लिखा- 

व्याख्या :- खुसरो कहते हैं कि जीवात्मा परमात्मा में मिल गयी है। ऐसा लगता है कि कोई नायिका सुख की सेज पर सो रही है, उसने अपने बालों को मुख पर फैला रखा है। (अर्थात खुसरो के गुरु ने मृत्युशैय्या पर बालों को फैलाकर मुंह ढक लिया है) अपने पति के साथ आनन्द ले रही हैं। खुसरो अपने मन में कहते हैं कि हमारा भी अब समय आगया है, हमें भी अपने परमात्मा में समाहित होना है।

मृत्यु के पास जाना पड़ेगा, किसी भी दिन ऊपर वाले का बुलावा आता होगा।



 






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